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|रचनाकार=भव्य भसीन
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<poem>
बांवरा कन्हैया मेरा बांवरा कन्हैया
जहाँ तहाँ देखो मेरी पकड़े है बैयाँ
बांवरा कन्हैया...
मोटी मोटी अखियों से घूरे मुझको तू
पीछे पीछे आये पल्लू पकड़े है क्यों तू
लाज शर्म कर देखेगी हाय मैया
बांवरा कन्हैया...
धीमे धीमे पग रख गेह मेरे आये
सोई रहूँ रैन में कपोल चूम जाए
कितना है नटखट हाय मेरा सइयाँ
बांवरा कन्हैया...
अधरों पर वंशी भई मतवारी
बावरा है कान्हा तेरी बांवरी है नारी
नाचती सखी की काहे पकड़े कलैया
बांवरा कन्हैया...
साज सजाये कभी कजरा लगाए
पीत पटाम्बर माला लटकाए
अपनी छवि की काहे लेत बलैया
बांवरा कन्हैया
</poem>