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Kavita Kosh से
परम्परागत पुरखो की जागृति की फिर से
उठा शीश पर रक्खा हमने हिम-किरीट उजव्व्लउज्ज्वल
हम ऐसे आज़ाद हमारा झंडा है बादल
जो अपने सिर धरवाते थे अब शरमाते
फूल कली बरसाने वाली टूट गई दुनिया