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संवेदना की छाँव / पूनम चौधरी

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जब कोई चुप हो,
तो शब्दों की भीड़ में उसकी नीरवता को मत तोड़ो
बस उसके पास बैठ जाओ
जैसे पीपल की छाँव किसी पथिक की थकान सुन लेती है

उसकी आँखों में कभी-कभी अनकहा बादल घिर आता है
उसमें शब्दों का सूरज मत खोजो
बस अपने हाथों से उसके मन की पथरीली धरती को
हल्की-सी शीतल ओस की तरह भिगो दो

जब कोई भूल कर बैठे,
तो उसे उसका भार मत दिखाओ;
बल्कि उसकी थकान को देखो
जैसे नदी देखती है झरे हुए पत्ते को
नदी उसे तिरस्कृत नहीं करती
बस अपनी गोद में बहा लेती है

जब कोई तुमसे दूर हो जाए
तो द्वार मत खटखटाओ
बस एक कोना छोड़ दो
जहाँ उसकी छाया लौटकर विश्राम कर सके
जैसे सूनी टहनी पर फिर से कोंपलें फूट आती हैं

जब कोई भय के घेरे में हो,
तो कुछ मत कहो
बस उसकी हथेली थामकर
एक आश्वस्ति का दीप प्रज्वलित कर दो
जैसे अंधकार में एक जुगनू राह दिखा देता है

जब कोई अपने सत्य के साथ
तुम्हारे समीप आए
तो अपने मन के द्वार खुले छोड़ दो
जैसे भोर का सूरज हर झरोखे से
उजास बिखेरता है

प्रेम, जो चीखता नहीं
बस मुस्कराता है
कभी तितली की तरह
कभी ठंडी हवा के झोंके- सा
कभी कोमल धूप में राहत की तरह

शब्द मत बनो
एक ओस की बूँद बनो
प्रतिज्ञा मत बनो
एक भरोसा बनो
चतुराई मत बनो
बस समझ बनो

यही प्रेम है
जो ग्रंथों के पृष्ठों में नहीं
जीवन के स्पंदनों में लिखा जाता है
जो शब्दों से नहीं
अनुभूतियों के उजास से पढ़ा जाता है

कभी कोयल की मधुर बोली में
कभी अमलतास की झरती पंखुरियों में
कभी बाँसुरी की धीमी धुन में
यह प्रेम बस झरता रहता है
तुम्हारे भीतर
मेरे भीतर
हम सभी के बीच

बस सुनो
उसके अनकहे शब्दों को
देखो
उसकी अनकही थकान को
बस उसे अनुभूति दो उस भरोसे की
जो कहता है
मैं यहीं हूँ
जब भी चाहो

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