{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=चन्द्र गुरुङ
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
कभी-कभार
आकाश में उड़ते-उड़ते, थकान से पंख ग़लता है
आकाश में उड़ते-उड़ते, प्यास से गला सूखता है
आकाश में उड़ते-उड़ते, भूख सताती है
आकाश में उड़ते-उड़ते, बरसात भिगोती है
आकाश में उड़ते-उड़ते, धूप झुलसाती है
परंतु वह पक्षी एक स्वतंत्र
ख़ुशी से भरी ज़िन्दगी उड़ता है।
</poem>