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पचीसवीं किरण / द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी
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रविवार को 14:37 बजे
शशि की संगिनि यह रूप देख
मुँह छिपा रही
लज्तित
लज्जित
हो कर॥
</poem>
Arti Singh
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