गृह
बेतरतीब
ध्यानसूची
सेटिंग्स
लॉग इन करें
कविता कोश के बारे में
अस्वीकरण
Changes
क़तआत / सतीश शुक्ला 'रक़ीब'
191 bytes added
,
23 जून
44
हम चैन से बैठेंगे किसी हाल न जब तक
भारत का ये परचम वहाँ फहरा नहीं लेंगे
45
आओ कुछ ऐसा करें आग नफ़रत की बुझे
हम भी समझाएं इन्हें, तुम भी समझाओ उन्हें
</poem>
SATISH SHUKLA
490
edits