भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
44
हम चैन से बैठेंगे किसी हाल न जब तक
भारत का ये परचम वहाँ फहरा नहीं लेंगे 45आओ कुछ ऐसा करें आग नफ़रत की बुझेहम भी समझाएं इन्हें, तुम भी समझाओ उन्हें
</poem>
493
edits