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अप्रणय — 1 / राजकमल चौधरी

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प्रणय एक स्वर शब्द है । तुम्हें
स्त्री की तरह द्वैत बनाने के लिए मैंने
अप्रणय का प्रपंच
रच लिया था । बाज़ार में
हिल्सा मछलियाँ । घर में क्वाँरी
बहनें ।
चौराहों पर अफ़ीम-रस में उबाली गई
चाय के स्टॉल । अख़बार में
अकाल सूचनाएँ ।
इस सारे प्रपंच ने मुझे रेलवे
टाइम-टेबुल में
और तुम्हारे यात्रा-विवरणों में
बाँध लिया है । जहाँ
पहले कविताएँ अपनी गाँठ बाँधती थीं
वहीं अब सिरोसिस का दर्द उभरता है ।
प्रणय इतना एकस्वर शब्द है
कि तुम
मेरे टेबुल पर फूलदान नहीं रहकर
स्त्री हो गई हो ।
</poem>
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