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Kavita Kosh से
भीड़ हजारों की समक्ष हो,
हृदय-भाव घबराते हों।
तभी धीर का भारी पत्थर ,मन पर रखना पड़ता है।
अभिनय करना पड़ता है। ,अभिनय करना पड़ता है।
मन का क्रंदन गीत बने
समय कहे यह वर्जित है
रूह कहे यह पीड़ा भारी ,देने की क्या तुम अधिकारी?सब भावों पर लगा के ताला ,खुद से लड़ना पड़ता है।
अभिनय करना पड़ता है ,अभिनय करना पड़ता है।
सम्बंधों का सूर्य दीप्त हो,
किसको रुचिकर लगता है?
बहुत कथायें मिटती हैं तब ,नयी कथा का सर्जन होता।जहाँ दुखों को ख़ुद कह सुनकर ,खुद ही हरना पड़ता है।
अभिनय करना पड़ता है ,अभिनय करना पड़ता है।
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