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लुत्फ़ ख़ुदी यही है कि शान-ए-बक़ा रहूँ / रतन पंडोरवी
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6 जुलाई
इंसान के लिबास में बन कर ख़ुदा रहूँ।
जब
मुझ
तुझ
को मेरे सामने आने से आर है
किस हौसले पे तुझ को ख़ुदा मानता रहूँ।
इक तू कि मेरे दिल ही में छुप कर पड़ा रहे
इक मैं कि हर
चिहार
चहार
तरफ़ ढूँढता रहूँ।
तू ही बता कि ये कोई इंसाफ़ तो नहीं
Abhishek Amber
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