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|रचनाकार=रसूल हमज़ातफ़
|अनुवादक=मदनलाल मधु
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<poem>
अपनी धरती के बारे में
कहना चाहा बहुत, नहीं कुछ भी कह पाया,
भरी खुरजियाँ संग लिए हूँ
हाय मुसीबत, मैं तो उनको खोल न पाया !

अपनी भाषा में दुनिया का
गाना चाहा गीत, मगर मैं गा न पाया,
लादे हूँ, सन्दूक पीठ पर
हाय मुसीबत, ताला पर न खुला खुलाया !

'''रूसी भाषा से अनुवाद : मदनलाल मधु'''
</poem>
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