भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
सूरज गायब हो गया
चौकी के पीछे
और अचानक बन्द हो गईंदिन के सप्त सुरों कीप्रभावशाली आवाज़ें अचानक बन्द हो गईं।।
छतों के कंगूरों पर
दिन की तन्त्रिकाएँ
रोशनियाँ झिलामिला झिलमिला रही हैं
छतों से लटके
लैम्पों में