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{{KKRachna
|रचनाकार=वीरेन्द्र वत्स
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
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<poem>
आप कुछ यूं उदास होते हैं
रेत में कश्तियाँ डुबोते हैं
ख़ुद पे इतना भी ए’तबार नहीं
गैर की गलतियाँ सँजोते हैं
लोग क्यूं आरज़ू में जन्नत की
ज़िन्दगी का सुकून खोते हैं
जब से मज़हब में आ गए काँटे
हम मोहब्बत के फूल बोते हैं
बज़्म के कहकहे बताते हैं
आप तन्हाइयों में रोते हैं
</poem>
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|संग्रह=
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आप कुछ यूं उदास होते हैं
रेत में कश्तियाँ डुबोते हैं
ख़ुद पे इतना भी ए’तबार नहीं
गैर की गलतियाँ सँजोते हैं
लोग क्यूं आरज़ू में जन्नत की
ज़िन्दगी का सुकून खोते हैं
जब से मज़हब में आ गए काँटे
हम मोहब्बत के फूल बोते हैं
बज़्म के कहकहे बताते हैं
आप तन्हाइयों में रोते हैं
</poem>