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|रचनाकार=नेहा नरुका
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|संग्रह=
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<poem>
फूलवती एक फैक्ट्री के लिए जैकेट सिलती है
आँखें जवाब दे रही हैं उसकी
फिर भी वह देख लेती हैं अन्धेरे में
खट-खट करती सुई का धागा
घण्टे भर में बना देती है
किसी अज़नबी के लिए उसकी पसन्द के रंग - रूप वाली सुन्दर जैकेट
यूँ तो उसका बनाया जैकेट सैकड़ों अज़नबियों ने पहन रखा है
पर अजनबी अनजान है फूलवती के हुनर से
वे अक्सर जैकेट की तारीफ़ में किसी कम्पनी का नाम लेते हैं
जैकेट कम्पनी के नाम से बिकती है
कम्पनी का असली मालिक एक मन्त्री का ख़ास है
पर काम देखने वाला मालिक कोई और है
काम देखने वाला बेर की गुठली की तरह सख़्त है
उसे वहम है
उसकी सख़्ती कम्पनी की दिन दूनी रात चौगुनी तरक़्क़ी का राज है
उसे नहीं पता तरक़्क़ी का राज दरअसल फूलवती (जैसों) के हाथ में है
अजनबी असली मालिक को भी नहीं जानते
न उन्हें किसी को जानने में कोई दिलचस्पी है
उन्हें तो जैकेट से मतलब
वे फ़ालतू चीज़ों पर अपना टाइम ख़राब नहीं करते
उनके शब्दों में कहन कुछ यूँ है —
'मैटर ये करता है कि जैकेट कितने में पड़ी
और उस पर कितना डिस्काउण्ट मिला ?'
ऐसे में फूलवती की कौन सोचे ?
कौन सोचे कि उसके पास जोड़ों के दर्द के इलाज के पैसे नहीं है
कौन सोचे कि उसका साथी दस बरस पहले रेल से कटकर मर गया था
कौन सोचे कि फूलवती पैंसठ की उम्र में मेहनत करके केवल जीवित रह पाई है
जब उसका नाम तक जैकेट पहनने वाले जानते नहीं तो उसके बारे में कोई कैसे सोचे ?
मगर सवाल यह है कि जैकेट पहनने वाले फूलवती को क्यों नहीं जानना चाहते ?
फूलवती के बगल में उर्मिला रहती है
उर्मिला औरतों के लिए पचास रुपये का ब्लाउज़ सिलती है
उर्मिला के सिले ब्लाउज़ केवल गली की औरतें पहनती हैं
पर उर्मिला को सब जानती हैं
जानती हैं तभी तो उसके द्वार पर तारीफ़ें और उलाहने आते हैं
फूलवती के यहाँ अज़नबीपन आता है
आता नहीं दरअसल कई बरसों से आकर बीमार कुत्ते की तरह बैठा है
फूलवती कुछ नहीं कहती बस उसकी विषैली लार देखती है
देखती है उसका दुर्गंध से भरा सड़ता हुआ शरीर
कभी कभी फूलवती तय नहीं कर पाती कि सड़ कौन रहा है ?
कुत्ता ? वह ख़ुद ? जैकेट ? अजनबी ? मालिक ? मन्त्री का ख़ास ? मन्त्री ?
या फिर सब ???
_____________________________________
2024
</poem>
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फूलवती एक फैक्ट्री के लिए जैकेट सिलती है
आँखें जवाब दे रही हैं उसकी
फिर भी वह देख लेती हैं अन्धेरे में
खट-खट करती सुई का धागा
घण्टे भर में बना देती है
किसी अज़नबी के लिए उसकी पसन्द के रंग - रूप वाली सुन्दर जैकेट
यूँ तो उसका बनाया जैकेट सैकड़ों अज़नबियों ने पहन रखा है
पर अजनबी अनजान है फूलवती के हुनर से
वे अक्सर जैकेट की तारीफ़ में किसी कम्पनी का नाम लेते हैं
जैकेट कम्पनी के नाम से बिकती है
कम्पनी का असली मालिक एक मन्त्री का ख़ास है
पर काम देखने वाला मालिक कोई और है
काम देखने वाला बेर की गुठली की तरह सख़्त है
उसे वहम है
उसकी सख़्ती कम्पनी की दिन दूनी रात चौगुनी तरक़्क़ी का राज है
उसे नहीं पता तरक़्क़ी का राज दरअसल फूलवती (जैसों) के हाथ में है
अजनबी असली मालिक को भी नहीं जानते
न उन्हें किसी को जानने में कोई दिलचस्पी है
उन्हें तो जैकेट से मतलब
वे फ़ालतू चीज़ों पर अपना टाइम ख़राब नहीं करते
उनके शब्दों में कहन कुछ यूँ है —
'मैटर ये करता है कि जैकेट कितने में पड़ी
और उस पर कितना डिस्काउण्ट मिला ?'
ऐसे में फूलवती की कौन सोचे ?
कौन सोचे कि उसके पास जोड़ों के दर्द के इलाज के पैसे नहीं है
कौन सोचे कि उसका साथी दस बरस पहले रेल से कटकर मर गया था
कौन सोचे कि फूलवती पैंसठ की उम्र में मेहनत करके केवल जीवित रह पाई है
जब उसका नाम तक जैकेट पहनने वाले जानते नहीं तो उसके बारे में कोई कैसे सोचे ?
मगर सवाल यह है कि जैकेट पहनने वाले फूलवती को क्यों नहीं जानना चाहते ?
फूलवती के बगल में उर्मिला रहती है
उर्मिला औरतों के लिए पचास रुपये का ब्लाउज़ सिलती है
उर्मिला के सिले ब्लाउज़ केवल गली की औरतें पहनती हैं
पर उर्मिला को सब जानती हैं
जानती हैं तभी तो उसके द्वार पर तारीफ़ें और उलाहने आते हैं
फूलवती के यहाँ अज़नबीपन आता है
आता नहीं दरअसल कई बरसों से आकर बीमार कुत्ते की तरह बैठा है
फूलवती कुछ नहीं कहती बस उसकी विषैली लार देखती है
देखती है उसका दुर्गंध से भरा सड़ता हुआ शरीर
कभी कभी फूलवती तय नहीं कर पाती कि सड़ कौन रहा है ?
कुत्ता ? वह ख़ुद ? जैकेट ? अजनबी ? मालिक ? मन्त्री का ख़ास ? मन्त्री ?
या फिर सब ???
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2024
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