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|रचनाकार=निहालचंद
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}}
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<poem>
ध्यान हर मैं, फिरै दर-दर मैं, चली पर-घर मैं, कर मैं बोतल ठाली ॥टेक॥
कुछ होणी नै बट्टे हाड़े, कुछ राणी नै रचे पवाड़े,
माड़े भागाँ की, मणि नागाँ की, भेंट चढ़ी कागाँ की,
बागाँ की कोयल काली ।1।
लिया था भीड़ पड़ी मैं शरणा, दीख रह्या बिन आई मरणा,
थी निरणाबासी, भूखी प्यासी, सोळाराशि,
दासी रोवती चाल्ली ।2।
करै थी ज्यूँ याद राम नै सीया, आवै था उझल-उझल कै हीया,
पिया तन-मन के, इस गौरी धन के, रंग जोबन के, गुलशन के पाँच माली।3।
निहालचन्द कहै सोच अकल से, आँसू पोंछ रही अंचल से,
भरे जल से नैन, धो लिया दहन, लगी दुख सहन,
पर्दों मैं रहन वाली ।4।
</poem>
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ध्यान हर मैं, फिरै दर-दर मैं, चली पर-घर मैं, कर मैं बोतल ठाली ॥टेक॥
कुछ होणी नै बट्टे हाड़े, कुछ राणी नै रचे पवाड़े,
माड़े भागाँ की, मणि नागाँ की, भेंट चढ़ी कागाँ की,
बागाँ की कोयल काली ।1।
लिया था भीड़ पड़ी मैं शरणा, दीख रह्या बिन आई मरणा,
थी निरणाबासी, भूखी प्यासी, सोळाराशि,
दासी रोवती चाल्ली ।2।
करै थी ज्यूँ याद राम नै सीया, आवै था उझल-उझल कै हीया,
पिया तन-मन के, इस गौरी धन के, रंग जोबन के, गुलशन के पाँच माली।3।
निहालचन्द कहै सोच अकल से, आँसू पोंछ रही अंचल से,
भरे जल से नैन, धो लिया दहन, लगी दुख सहन,
पर्दों मैं रहन वाली ।4।
</poem>