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पौरुष / अशोक अंजुम

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<poem>
मेरे दुश्मन ने मेरा सब कुछ लूट लिया
मेरा रत्न जड़ित सिहासन
मेरा मरमरी राजमहल
मेरा अकूत खजाना
और
और मेरी औरत भी
और जब तुमने यह बताया
कि मेरी औरत मेरे दुश्मन के यहाँ
सुखी है
संतुष्ट है
पहले से भी अधिक खिली-खिली
पहले से भी अधिक गदराई
तब मेरे भाई !
एकदम से चरमराया मेरा पुरुषत्व,
अचानक
गश ख़ाकर गिर पड़ा
मेरा पुरुष तत्व!
</poem>
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