{{KKRachna
|रचनाकार=नचिकेता
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<poem>कुशल-क्षेम से<br>पिया-गेह में<br>बहन तुम्हारी है<br><br>
सुबह <br>सास की झिड़की<br>वदन बदन झिंझोड़ जगाती है<br>,और ननद की <br>जली-कटी<br>नश्तरें चुभाती है<br>,पूज्य ससुर की<br>आँखों की<br>बढ़ गयी गई खुमारी है<br><br> । कुशल-क्षेम से पिया-गेह में बहन तुम्हारी है ।।
नहीं हाथ में<br>मेहंदी<br>मेंहदी, झाडू, चूल्हा-चौका है<br>,देवर रहा तलाश<br>निगल जाने का<br>मौका मौक़ा है<br>,और जेठ की<br>जिह्वा पर भी रखी<br>दुधारी है<br><br>।कुशल-क्षेम से पिया-गेह में बहन तुम्हारी है ।।
पति परमेश्वर<br>सिर्फ चाहता<br>, खाना गोस्त गोश्त गरम<br>,और पड़ोसिन के घर<br>लेती है<br>अफवाह अफ़वाह जनम<br>,करमजली होती<br>शायद<br>दुखियारी नारी है<br><br>।कुशल-क्षेम से पिया-गेह में बहन तुम्हारी है ।।
कई लाख लेकर भी<br>गया बनाया<br>दासी है<br>,और लिखी<br>किस्मत क़िस्मत में शायद<br>गहन उदासी है<br>,नहीं सहूंगी-<br>सहूँगी अब दुख की भर गयी गई तगारी है।कुशल-क्षेम से पिया-गेह में बहन तुम्हारी है ।।<br/poem>तगारी है।