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Kavita Kosh से
मुझे मोजज़ों पे यक़ीं नहीं
मगर आरज़ू है कि जब कज़ा
मुझे बज़्मे-दहरसे दहर से ले चले
तो फिर एक बार ये अज़न दे
कि लहद से लौट के आ सकूँ