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तप्त धरती पर दिन सुनहरा डूब रहा है
और धधक रही है चट्टान बृहन्मणि<ref>प्राचीन मिस्त्र में मिलने वाली सफ़ेद या लाल स्फटिकों से युक्त कड़ी चटृटान </ref> लगातारप्रकाश देवता युवा अपोलो<ref>प्राचीन यूनानी मिथक परम्परा में प्रकाश का देवता</ref> वहाँ घूम रहा है
दूर तरकश के साथ करे वह वीणा की झंकार
तू झलके कुछ इस तरह कि हमको ले तू मोह
भागे तू उसके पीछे साथ लिए सब सपने
लेकिन विनय के इस क्षण तू है हमारी छोह<ref>अनुग्रह, दया, प्रेम, स्नेह, जान, जोश, मुहब्बत, प्यार, चाह</ref> छोह
सुबह भोर के संग उड़ आती जो चैतन्य में अपने
1890
शब्दार्थ :
बृहन्मणि = प्राचीन मिस्त्र में मिलने वाली सफ़ेद या लाल स्फटिकों से युक्त कड़ी चटृटान।
अपोलो = प्राचीन यूनानी मिथक परम्परा में प्रकाश का देवता।
छोह = अनुग्रह, दया, प्रेम, स्नेह, जान, जोश, मुहब्बत, प्यार, चाह।
'''मूल रूसी से अनुवाद : अनिल जनविजय'''
1890 г.
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