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हमारा पेड़ सूखा / चरण जीत चरण

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<poem>
हरे दिखते थे पर सूखे हुए थे
वो सारे फूल जो मैंने चुने थे

हम उसके लौट आने की ख़ुशी में
उसे जाते हुए भी देखते थे

हमारा पेड़ सूखा तो ये जाना
तुम्हारे बाग़ क्यूँ इतने हरे थे?

जरा रुकते मैं दिल की बात कहता
तुम्हें जल्दी थी और रिश्ते नए थे

हुए फ़िर दूर हम इक दूसरे से
सभी के अपने-अपने मसअले थे

बनाने में लगा था बाँध कोई
मगर रह-रह के सोते फूटते थे

कोई सूरज कहीं पर बुझ गया था
सितारे राख होने लग गए थे
</poem>
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