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|रचनाकार=आन्ना अख़्मातवा
|अनुवादक=अनिल जनविजय
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<poem>
सब कुछ छिन चुका है, ताक़त भी औ’ प्यार भी
एक अनचाहे शहर में छूट गया शरीर
सूरज ख़ुशी नहीं देता। लगता है मेरा रुधिर भी
ठण्डा हो चुका है। एकदम धीर - गम्भीर

मैं उस हंसमुख सरस्वती के स्वभाव को नहीं पहचान पाती:
वह देखती है और एक शब्द भी नहीं बोलती,
और एक गहरे पुष्पमाला में अपना सिर झुका लेती है,
थकी हुई, मेरी छाती पर।

और हर गुजरते दिन के साथ विवेक और भी भयानक होता जाता है
उग्र: वह एक बड़ी श्रद्धांजलि चाहता है।
अपना चेहरा छिपाते हुए, मैंने उसे जवाब दिया...
लेकिन अब न आँसू हैं, न बहाने।

1916 का शरदकाल
सिवस्तोपल

'''मूल रूसी से अनुवाद : अनिल जनविजय'''

'''लीजिए, अब यही कविता मूल रूसी में पढ़िए''' 
Анна Ахматова
Все отнято: и сила и любовь...

Все отнято: и сила и любовь.
В немилый город брошенное тело
Не радо солнцу. Чувствую, что кровь
Во мне уже совсем похолодела.

Веселой Музы нрав не узнаю:
Она глядит и слова не проронит,
А голову в веночке темном клонит,
Изнеможенная, на грудь мою.

И только совесть с каждым днем страшней
Беснуется: великой хочет дани.
Закрыв лицо, я отвечала ей...
Но больше нет ни слез, ни оправданий.

Осень 1916
Севастополь
</poem>
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