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|रचनाकार=चन्द्र त्रिखा
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|संग्रह=
}}
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<poem>
तुम इसे जिंदादिली कह लो मगर ये बेबसी है
कुछ मुखौटे पहनकर कट जाए तो वह ज़िन्दगी है
काट लो नोर लगाकर या कहीं चुपचाप रो कर
एक लम्बी उम्र जीना, वास्तव में ख़ुदकुशी है
वक्त मरहम है मगर ए दोस्त! यह क्यों भूलता है
जिंदगी भर जो न भरता वक़्त वह नासूर भी है
फूल कांटे जाम साकी सब गए वक्तों की बात
उम्र थोड़ी जल्द काटो वक़्त बेहद क़ीमती है
हो सके तो अब न लिखना दर्द का इतिहास कोई
उन लम्हों को पास रखना जिन लम्हों में रोशनी है
</poem>
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तुम इसे जिंदादिली कह लो मगर ये बेबसी है
कुछ मुखौटे पहनकर कट जाए तो वह ज़िन्दगी है
काट लो नोर लगाकर या कहीं चुपचाप रो कर
एक लम्बी उम्र जीना, वास्तव में ख़ुदकुशी है
वक्त मरहम है मगर ए दोस्त! यह क्यों भूलता है
जिंदगी भर जो न भरता वक़्त वह नासूर भी है
फूल कांटे जाम साकी सब गए वक्तों की बात
उम्र थोड़ी जल्द काटो वक़्त बेहद क़ीमती है
हो सके तो अब न लिखना दर्द का इतिहास कोई
उन लम्हों को पास रखना जिन लम्हों में रोशनी है
</poem>