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|रचनाकार=विनीत पाण्डेय
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}}
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अब तो आ जाओ रघुराज
यहाँ पर बिगड़े सबके काज
बिगड़े सबके काज कि लेकर
धनुष बाण तुम आज
अब तो आ जाओ रघुराज
यहाँ पर बिगड़े सबके काज
गली-गली मारीच हो गए हर नुक्कड़ पर रावण
भ्रष्टाचार बनी सुरसा है नगर बन गए कानन
खर-दूषण भी रूप बदल कर वोट मांगते आज
अब तो आ जाओ रघुराज
घेर खड़ी है हमको तो वादों - जुमलों की माया
घूम के देखा पर विकास तो हमको मिल ना पाया
तार लगे पर बिजली को आने में लगती लाज
अब तो आ जाओ रघुराज
प्रभु आप पेट्रोल की क़ीमत अब तो कम करवा दो
या फ़िर मेरे स्कूटर को पानी से चलवा दो
घूमूँ कैसे घर में बीवी बैठी है नाराज़
अब तो आ जाओ रघुराज
सच्चाई के रंग न चढ़ते क्यों नेताओं पर जी
वादों से ले कर दावों तक करते सबकुछ फ़र्ज़ी
झूठ बोलने की आदत से कब आएँगे बाज़
अब तो आ जाओ रघुराज
</poem>
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अब तो आ जाओ रघुराज
यहाँ पर बिगड़े सबके काज
बिगड़े सबके काज कि लेकर
धनुष बाण तुम आज
अब तो आ जाओ रघुराज
यहाँ पर बिगड़े सबके काज
गली-गली मारीच हो गए हर नुक्कड़ पर रावण
भ्रष्टाचार बनी सुरसा है नगर बन गए कानन
खर-दूषण भी रूप बदल कर वोट मांगते आज
अब तो आ जाओ रघुराज
घेर खड़ी है हमको तो वादों - जुमलों की माया
घूम के देखा पर विकास तो हमको मिल ना पाया
तार लगे पर बिजली को आने में लगती लाज
अब तो आ जाओ रघुराज
प्रभु आप पेट्रोल की क़ीमत अब तो कम करवा दो
या फ़िर मेरे स्कूटर को पानी से चलवा दो
घूमूँ कैसे घर में बीवी बैठी है नाराज़
अब तो आ जाओ रघुराज
सच्चाई के रंग न चढ़ते क्यों नेताओं पर जी
वादों से ले कर दावों तक करते सबकुछ फ़र्ज़ी
झूठ बोलने की आदत से कब आएँगे बाज़
अब तो आ जाओ रघुराज
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