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|रचनाकार=अमन मुसाफ़िर
|अनुवादक=
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}}
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<poem>
पेड़,पौधे,फूल,पंछी,पत्तियों की बात कर
दाल-चावल, साग-रोटी, सब्जियों की बात कर
आदमी की भूख ने बर्बाद कितने कर दिए
जंगलों को खा गयीं हैं कुर्सियों की बात कर
फिर पुनः बरसात में बह जाएगी यह झोपड़ी
गर्मियाँ तो काट लेंगे सर्दियों की बात कर
धीरे-धीरे आग नफ़रत की जला देगी इन्हें
हस्तियाँ आधार इसका पीढ़ियों की बात कर
इस सदी में आदमी का ख़्वाब बूढ़ा हो गया
आत्मा पर पड़ रही हैं झुर्रियों की बात कर
बात करना है सरल बातों के बलबूते सही
बाग़,बगिया ध्वस्त हैं तो बस्तियों की बात कर
युद्ध का कोई विगुल हो या कोई चेतावनी
शंख तो बजते रहेंगे सीपियों की बात कर
इस तरह गर बात होगी बात बिगड़ेगी ज़रूर
शोर बेमतलब ही होगा चुप्पियों की बात कर
रोटी, कपड़ा और मकानों से इन्हें क्या वास्ता
मौज़ लेने आये हैं तो मस्तियों की बात कर
</poem>
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पेड़,पौधे,फूल,पंछी,पत्तियों की बात कर
दाल-चावल, साग-रोटी, सब्जियों की बात कर
आदमी की भूख ने बर्बाद कितने कर दिए
जंगलों को खा गयीं हैं कुर्सियों की बात कर
फिर पुनः बरसात में बह जाएगी यह झोपड़ी
गर्मियाँ तो काट लेंगे सर्दियों की बात कर
धीरे-धीरे आग नफ़रत की जला देगी इन्हें
हस्तियाँ आधार इसका पीढ़ियों की बात कर
इस सदी में आदमी का ख़्वाब बूढ़ा हो गया
आत्मा पर पड़ रही हैं झुर्रियों की बात कर
बात करना है सरल बातों के बलबूते सही
बाग़,बगिया ध्वस्त हैं तो बस्तियों की बात कर
युद्ध का कोई विगुल हो या कोई चेतावनी
शंख तो बजते रहेंगे सीपियों की बात कर
इस तरह गर बात होगी बात बिगड़ेगी ज़रूर
शोर बेमतलब ही होगा चुप्पियों की बात कर
रोटी, कपड़ा और मकानों से इन्हें क्या वास्ता
मौज़ लेने आये हैं तो मस्तियों की बात कर
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