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|रचनाकार=देवेन्द्र भूपति
|अनुवादक=राधा जनार्दन
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<poem>
भोज और औषध तीन दिनों की
सुबह और शाम का अन्त
बर्तनों की धुलाई में आकर होता है ।

आकस्मिक बुलावे की सूचना होती कुछ और है,
अच्छी खबर एक, …
घबराहट में… मिलता जब
दूसरा सदमा एक !

कुत्ते सुबह- सुबह सो जाते
किसी दिन, कोई जो अधिक सफल, परिचित कराया जाता है
निर्दिष्ट समय पूर्व मूँगफलियाँ भी ठीक नहीं पैदा होतीं

कल आज हुआ, बीता कल भविष्य है कहती नीति
शुरुआत में सब ठीक ही रहा होगा
फिर योजनापूर्वक बने नक़्शों में
कई द्वीप सागर में डूब गए
सागर मंथन से मिला अमृत
पीकर गले में विष संचय !

अंधेरों में मनुष्यों की उम्र पक गई
तीन मिनटों में कुछ और घटा तो…

भली ख़बर मिले तो
ख़बर भेजिएगा
भोज में शामिल होना सम्भव नहीं !

'''मूल तमिल से अनुवाद : राधा जनार्दन'''
</poem>
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