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<poem>
मन महकने लगा, तन बहकने लगा
कर दिया कोई जादू तेरे नाम ने,
बन्द-सी आँख मेरी ये कहने लगी
तू ज़रूर आ गई है मेरे सामने।

अब तलक कोई प्राणों में आई न थी
कोई ख़ुश्बू रगों में समायी न थी
मन की वीणा पर उँगली चलायी न थी
प्यार की कोंपलें सुगबुगाई न थीं
तूने पुलका दिया मन के चुप तार को
किस यवनिका से आकर मेरे सामने ।

तेरी पायल की छम-छम बसी प्राण में
गर्म साँसों की सीं-सीं सटी कान में
तेरे अलकों की भीनी महक घ्राण में
जैसे सद्भाव निखरे हों इनसान में
खिल उठा मन-कमल प्राण-सर में विकल
पा तेरी पूर्ण आनन-विभा सामने।

यों लगा सारा संसार सोने लगा
तेरे पदचाप-तालों में खोने लगा
फूल के गाल पर ओस सोने लगी
चाँद जगको किरण से भिंगोने लगा
यह कोई स्वप्न था याकि तेरा असर
मुझको उलझा दिया इसी अंज़ाम ने।
</poem>
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