भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अमरकांत कुमर |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KK...' के साथ नया पृष्ठ बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=अमरकांत कुमर
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatGeet}}
<poem>
हवा ज़रा धीरे बहना रे!
लगे टिकोले झर जायेंगे
लोरी-छन्द ज़रा कहना रे!!

डाल उदासी रोयेगी फिर
दुखों की बदली आयेगी घिर
रोयी-रोयी सुबह दिखेगी
संध्या घर रो जायेगी फिर।
इक सदमा बागों पर होगा
ऐसे देश नहीं रहना रे॥ हवा ज़रा धीरे...

जरा झुलाना प्यार से इनको
वत्सल भरे दुलार से इनको,
ये नन्हें हैं, ये बच्चे हैं
क्या मतलब संसार से इनको।
इनकी दुनिया बाग-बगीचे
कोयल-कूक-कथा कहना रे॥ हवा ज़रा धीरे...

मंजरियाँ डालों पर छातीं
मधुकर पर चढ़ लक्ष्मी आती,
घर से अधिक सुहावन बगिया
जन-जन को है अधिक लुभाती।
मादकता जब तैर रही हो
हमको पीड़ नहीं सहना रे॥ हवा ज़रा धीरे...

घोघ भरे खेतों में फसलें
किसिम-किसिम के अन्न की नस्लें,
अब वसन्त सरसाया तुझ पर
जितना चाहो बाग़ तू हँस ले।
टेसू, फूल सजाती बगिया
मगर टिकोले ही गहना रे॥ हवा ज़रा धीरे...
</poem>
Delete, Mover, Reupload, Uploader
17,292
edits