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Kavita Kosh से
दर्जी के कोरे कपड़े की तरह
कहीं से काटे, कहीं से सिले जाने के बाद
क्या घ्रणित घृणित आतंक को भी
किसी "वाद" की संज्ञा से नवाजें?
जिसने हजारों तेजसों की पूर्णता को
