आज से बीस साल पहले
हमें
एक ज्तोतिषी ज्योतिषी ने बतलाया था-
"चालीस पार करते ही
तुम पर इश्क़ का
"इस उम्र में इश्क़ फ़रमाओगे
सारा विचार धरा रह जाएगा
हब हाँ जूते खाओगे।"
हमने पूछा-
"इश्क़ का जूते से क्या सम्बन्ध है?"
लैला तो लैला
हमने लैला के बाप तक के खाए हैं
और निन्यांवे निन्यान्वे तक तो
यों मुस्कुराए हैं
जैसे कोई बात नहीं
फिल फिर जूता टूट जाने पर
मारने वाले से पूछा है
पिताजी!
तुम्हारे सर पर तो हैं ही नहीं
जूता पड़ते ही, बोलने लगेगा
दूसरा ब्रम्हारंध्र ब्रम्हरंध्र खोलने लगेगा
तीसरे में समाधी ले लोगे
और चौथे में
पहली बार
पहला जूता
हमारे सर पर पडते पड़ते ही
हमारी आँखो के सामने
तारे नाचने लगे थे
तो अलग दिखोगे
सच पूछो शैल चतुर्वेदी
तो तुम्हरी बॉड़ी तुम्हारी बॉडी का कंस्ट्रक्शन
इश्क़बाजी के ख़िलाफ़ है
लैला यह समझेगी
पागलों की तरह चीखना
वैसे आज कल की मुहब्बत भी
तुम्हे इस के इसके सिवाय क्या देगी
क्योंकी आज कल की नई छोकरी भी
नई कविता से क्या कम है
पैर दबाना अच्छा
और मजनूं का बाप कहलाने से
ज़ोरू का ज़ुलाम ग़ुलाम कहलाना अच्छा।"</poem>