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::प्रभु सर्वभूतेषु तथापि माया के परिवेश में,<br>::हैं स्वयम को आवृत किए ,रहते अगोचर वेष में।<br>::अति सूक्ष्म दर्शी भक्त ज्ञानी ही दया की दृष्टि से,<br>::हैं देख पाते परम प्रभु और विश्व को सम दृष्टि से॥ [ १२ ]<br><br>
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::लाभान्वित हो मानवों तुम ज्ञानियों के ज्ञान से,<br>::तुम उठो जागो और जानो ब्रह्म विधान से।::यह ज्ञानं ब्रह्म का गहन दुष्कर, बिन कृपा अज्ञेय ही,<br>::ज्यों हो छुरे की धार दुस्तर, ज्ञानियों से ज्ञेय है॥ [ १४ ]<br><br>
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::शुचि उपाख्यान सनातनम, यमराज से जो कथित है,<br>::यह ज्ञानियों द्वारा जगत में, कथित है और विदित है।<br>::इस नाचिकेतम अग्नि तत्व का श्रवण, अथवा जो कहे,<br>::महिमान्वित होकर प्रतिष्ठित, ब्रह्म लोक का पद गहें॥ [ १६ ]<br><br>
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