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::ज्यों एक वायु तथापि गति संयोग शक्ति अनेक हैं,<br>::त्यों विश्व के सब प्राणियों में ब्रह्म तत्व भी एक है।<br>::वह एक होकर भी अहो रखते अनेकों वेश हैं,<br>::अन्तः प्रवाहित बाह्य भी अनभिज्ञ बहु परिवेश हैं॥ [ १० ]<br><br>
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::तुम एक होकर भी प्रभो, रखते अनेकों वेश हो,<br>::अन्तः करण स्थित सभी के, आत्म भू अखिलेश हो।<br>::इस आत्म स्थित परम प्रभु का, ज्ञान जिस ज्ञानी को हो,<br>::उसे सुख सुलभ शाश्वत सनातन, अन्य को दुर्लभ अहो॥ [ १२ ]<br><br>
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::आनंद सर्वोपरि अलौकिक, सुख परम परब्रह्म का,<br>::यह वचन वाणी कैसे वर्णित, करे वर्जन ब्रह्म का।<br>::प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष है या, मात्र अनुभव गम्य है,<br>::उसे ज्ञात ज्ञानी करे कैसे, गूढ़ अतिशय धन्य है॥ [ १४ ]<br><br>
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