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<span class="mantra_translation">
ब्रह्माण्ड के अस्तित्व पूर्व तो एक मात्र ही ब्रह्म था,<br>
पर ब्रह्म प्रभु के अन्यथा, कोई चेष्टा रत न गम्य था।<br>
तब सृष्टि रचना का, आदि सृष्टि में, ब्रह्म ने निश्चय किया ,<br>
अथ इस विचार के साथ ही, कर्म फल निर्णय किया॥ [ १ ]<br><br>
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<span class="mantra_translation">
द्यु-मृत्यु लोक व् अन्तरिक्ष व् लोक भूतल के सभी,<br>
महः जनः तपः ऋत लोक अम्भः सूर्य चंद्र मरीचि भी ,<br>
लोक त्रिलोकी चतुर्दश, लोक सातों, गरिमा की,<br>
रचनाएं सब परमेश की और महत उसकी महिमा की॥ [ २ ]<br><br>
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<span class="mantra_translation">
सब लोकों की रचना अनंतर, ब्रह्म ने चिंतन किया,<br>
लोक पालों की सर्जना व् महत्त्व का भी मन किया.<br>
अतः ब्रह्म ने स्वयम जल से ब्रह्मा की उत्पत्ति की ,<br>
अथ हिरण्यगर्भा रूप ब्रह्मा मूर्तिमान की कृति की॥ [ ३ ]<br><br>
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<span class="mantra_translation">
संकल्प तप से अंडे के सम, हिरण्यगर्भ शरीर से,<br>
प्रथम मुख फ़िर वाक् अग्नि, नासिका से समीर से।<br>
अथ क्रमिक रोम, त्वचा, हृदय, मन, चन्द्रमा, श्रुति व् दिशा,<br>
नाभि अपान व् वीर्य, मृत्यु, क्रमिक सृष्टि की है दशा॥ [ ४ ]<br><br>
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