भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शलभ श्रीराम सिंह |संग्रह= }} <Poem> चम्पा ने जब पलाश ...
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=शलभ श्रीराम सिंह
|संग्रह=
}}

<Poem>

चम्पा ने
जब पलाश को देखा
थोड़ी-सी और खिल गई!

एक की हथेली ने पोंछ लिया
दूजे के माथ का पसीना।
सहसा आसान हो गया जीना
बिन खोजे राह मिल गई!
चम्पा ने...!

ईहा की बंधी हुई मुट्ठियाँ
जीवन के उठे हुए पाँव
देख--फ़र्क़ अपना खो बैठे हैं
जाड़ा-बरसात-- धूप-छाँव!
कुण्ठा की नींव हिल गई!
चम्पा ने...।


</poem>