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नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ज्ञान प्रकाश विवेक |संग्रह=गुफ़्तगू अवाम से है /...
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{{KKRachna
|रचनाकार=ज्ञान प्रकाश विवेक
|संग्रह=गुफ़्तगू अवाम से है / ज्ञान प्रकाश विवेक
}}
[[Category:ग़ज़ल]]
<poem>
दुख के सितम हज़ार मगर मुस्कुरा के देख
तू अपनी अज़मतों को ज़रा आज़मा के देख
शायद तुझे उड़ान की दे जाए दावतें-
इक दिन किसी उक़ाब को छत पर बुला के देख
तूने हथेलियों पे उठाए कई पहाड़
पानी पे जो हुबाब हैं इनको उठा के देख !
जब मैं हुआ उदास तो बच्चों ने ये कहा-
‘काग़ज़ कि कश्तियाँ या घरोंदे बना के देख’
मैंने ये सब चराग़ हवा से जलाए हैं-
तूफ़ान ! तेरी ज़िद है तो इनको बुझा के देख !
मेरा तो है यक़ीन कि निकलेगी रोशनी-
आँसू को तू चराग की तरह जला के देख.
</poem>
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|रचनाकार=ज्ञान प्रकाश विवेक
|संग्रह=गुफ़्तगू अवाम से है / ज्ञान प्रकाश विवेक
}}
[[Category:ग़ज़ल]]
<poem>
दुख के सितम हज़ार मगर मुस्कुरा के देख
तू अपनी अज़मतों को ज़रा आज़मा के देख
शायद तुझे उड़ान की दे जाए दावतें-
इक दिन किसी उक़ाब को छत पर बुला के देख
तूने हथेलियों पे उठाए कई पहाड़
पानी पे जो हुबाब हैं इनको उठा के देख !
जब मैं हुआ उदास तो बच्चों ने ये कहा-
‘काग़ज़ कि कश्तियाँ या घरोंदे बना के देख’
मैंने ये सब चराग़ हवा से जलाए हैं-
तूफ़ान ! तेरी ज़िद है तो इनको बुझा के देख !
मेरा तो है यक़ीन कि निकलेगी रोशनी-
आँसू को तू चराग की तरह जला के देख.
</poem>
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