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|रचनाकार=ज्ञान प्रकाश विवेक
|संग्रह=गुफ़्तगू अवाम से है / ज्ञान प्रकाश विवेक
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[[Category:ग़ज़ल]]
<poem>
गाँव इतना ज़ियादा बदल जाएगा मैंने सोचा न था
वो शहर से भी आगे निकल जाएगा मैंने सोचा न था

मरकरी बल्ब की रोशनी देखकर तेरे पण्डाल की
मेरे घर का अँधेरा मचल जाएगा मैंने सोचा न था

खोटे सिक्के तो कम रोशनी में दुकानों पे देता रहा
पर फटा नोट भी मेरा चल जाएगा मैंने सोचा न था

ये तो मालूम था कि मेरे तन की दीवार झुक जाएगी
उम्र के साथ सब कुछ बदल जाएगा मैंने सोचा न था

इक खिलौना जो मिट्टी का लाया था मैं जाके बाज़ार में
वो भी बारिश के पानी में गल जाएगा मैंने सोचा न था.
</poem>
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