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जी करता है जंगल के इक गोशे को आबाद करें
धूनी रमाएँ,चिलम भरेम भरें और भोलेनाथ को याद करें
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रुक—सा रुक-सा गया है सिल्सिला—ए—नज़्मे—कायनातसिल्सिला-ए-नज़्मे-कायनात
थम— थम-सी गई है गर्दिशे—दौराँ गर्दिशे-दौराँ तिरे बग़ैर
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