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|रचनाकार=ज्ञान प्रकाश विवेक
|संग्रह=गुफ़्तगू अवाम से है / ज्ञान प्रकाश विवेक
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[[Category:ग़ज़ल]]
<poem>
ज़िन्दगी की जंग में जाँबाज़ होना आ गया
मौत को तकिए के नीचे रख के सोना आ गया

ज़िन्दगी तेरे मदरसे में यही सीखा हुनर
मोम के धागे में अंगारे पिरोना आ गया

इस क़दर खुश था मेरी काग़ज़ की कश्ती देखकर
हाथ में जैसे समन्दर के खिलौना आ गया

और तो होना था क्या इन मुश्किलों में दोस्तो!
पीठ पर चट्टान जैसा बोझ ढोना आ गया

बाद मुद्दत के गया था आज मैं भाई के घर
उसकी आँखें नम हुईं मुझको भी रोना आ गया.
</poem>
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