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Kavita Kosh से
लोग आएँगे तमाशा देखने ये सोच कर
भूख लगती जब मुझे तो माँ सुनाती लोरियाँ
उसने मेरे पास रख दीं आँसुओं की अर्ज़ियाँ
बाप कि की उँगली पकड़ कर गाँव जाता था कभी
याद आती हैं मुझे वो गर्मियों की छुट्टियाँ
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