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लोग आएँगे तमाशा देखने ये सोच कर
उसनी उसने तपती रेत पे रख दी हैं ज़िन्दा मछलियाँ
तंगदस्ति तंगदस्ती के वो दिन भी क्या ग़ज़ब थे दोस्तो
भूख लगती जब मुझे तो माँ सुनाती लोरियाँ
उसने मेरे पास रख दीं आँसुओं की अर्ज़ियाँ
बाप कि की उँगली पकड़ कर गाँव जाता था कभी
याद आती हैं मुझे वो गर्मियों की छुट्टियाँ
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