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{{KKRachna
|रचनाकार=सौदा
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जी तक तो लेके दूँ कि तू हो कारगर कहीं<br/>
ऐ आह! क्या करूँ, नहीं बिकता असर कहीं<br/>
''७. पत्थर और ईँट के आलावा''<br/>
<br/>
--[[सदस्य:विनय प्रजापति|विनय प्रजापति]] २१:५७, २७ दिसम्बर २००८ (UTC)