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नया पृष्ठ: '''लेखन वर्ष: २००३ '''<br/><br/> टूटा हुआ चाँद है मटमैली-सी रात में<br/> बुझती ह...
'''लेखन वर्ष: २००३ '''<br/><br/>
टूटा हुआ चाँद है मटमैली-सी रात में<br/>
बुझती हुई रोशनी है जैसे शाम की<br/><br/>

एक-एक ख़िज़ाँ के पत्तों पर लिखा था नाम तेरा<br/>
कुछ अब भी पड़े होंगे… सूखे, टूटे हुए<br/><br/>

किरने भीगे हुए सूरज की हैं जाविदाँ<br/>
कुछ एक रखी होंगी दिल की दराज़ों में<br/><br/>

कहानी अधूरी सही अपने प्यार की<br/>
मगर लम्सो-उन्स हैं पानी की तरह<br/><br/>

गोशा-ए-दिल में कौन बैठा है मेरे ज़ख़्मों<br/>
हरा रंग अपना उसको भी दिखाओ ज़रा<br/><br/>

मंज़र यह शाम का और आँसुओं के साहिल<br/>
सब एक ज़र्द की तह में दब गये हैं<br/><br/>

कुछ शहद-सी बूँदे हैं तेरी आवाज़ों की<br/>
आज भी गूँजती हैं दिल के सन्नाटों में<br/><br/>

मैं ख़ला में भटकता रहा सय्यारों की जैसे<br/>
मुझे तुम जैसा चाँद नसीब न हुआ<br/><br/>

मुझे सौदाई समझे यह ज़माने वाले<br/>
दोस्तों में भी रहा अजनबी की तरह<br/><br/>

मेरी हर दुआ और आह में तेरा नाम निकला<br/>
रश्क़ इस बात पे मैंने खु़दा का भी देखा<br/><br/>