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Kavita Kosh से
<Poem>
वह क्षण भर भी नहीं
उसका एक बारीक़-साटुकड़ा सा टुकड़ा था बस,
जब लगाम मेरे हाथ से छूट गई थी,
और सारी सड़क की भीड़ के साथ-साथ