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|रचनाकार=विनय प्रजापति 'नज़र'
}}
'''लेखन वर्ष[[Category: २००३'''<br/><br/>ग़ज़ल]]
आदाब तुझे ऐ मेरे वतन लखनऊ<br/>आदाब तुझे मेरे जानो-तन लखनऊ<br/><br/Poem>
है कभी आईना कभी शराब-सा तू<br/>आदाब तुझे ऐ मेरे वतन लखनऊहै मेरी शोख़ी मेरा बाँकपन आदाब तुझे मेरे जानो-तन लखनऊ<br/><br/>
है कभी आईना कभी शराब-सा तू ही मुस्लमाँ और तू ही है हिन्दू<br/>निकहते रहे तेरे गुलशन मेरी शोख़ी मेरा बाँकपन लखनऊ<br/><br/>
लहज़ा लुत्फ़ ज़ुबाँ है तू ही मुस्लमाँ और मेरी यह ख़ू<br/>हर चीज़ तू ही है जैसे मेरा चमन हिन्दूनिकहते रहे तेरे गुलशन लखनऊ<br/><br/>
लहज़ा लुत्फ़ ज़ुबाँ और मेरी यह ख़ूहर चीज़ है जैसे मेरा चमन लखनऊ है जन्नतो-इरम इसमें हर कू<br/>लहू में दौड़ता है जाने-मन लखनऊ  <br/><br/Poem'''रचनाकाल : 2003