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|रचनाकार=विनय प्रजापति 'नज़र'
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है कभी आईना कभी शराब-सा तू ही मुस्लमाँ और तू ही है हिन्दू<br/>निकहते रहे तेरे गुलशन मेरी शोख़ी मेरा बाँकपन लखनऊ<br/><br/>
लहज़ा लुत्फ़ ज़ुबाँ और मेरी यह ख़ूहर चीज़ है जैसे मेरा चमन लखनऊ है जन्नतो-इरम इसमें हर कू<br/>लहू में दौड़ता है जाने-मन लखनऊ <br/><br/Poem> '''रचनाकाल : 2003