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|रचनाकार=विनय प्रजापति 'नज़र'
}}
'''लेखन वर्ष[[category: २००३'''<br/><br/>ग़ज़ल]]
जो होता है भले के लिए होता है<br/>ख़ुद को समझने के लिए होता है<br/><br/poem>
इंसान की आदत जो होता है भले के लिए होता है बदल जाना<br/>कि वह बदलने ख़ुद को समझने के लिए होता है<br/><br/>
वक़्त रुका इंसान की आदत है कब किसके लिए<br/>बदल जानाआदतन चलने कि वह बदलने के लिए होता है<br/><br/>
सच-झूठ का दुनिया में वक़्त रुका है हिसाब<br/>कब किसके लिएमुँह पर कहने आदतन चलने के लिए होता है<br/><br/>
सच-झूठ का दुनिया में है हिसाबमुँह पर कहने के लिए होता है माहिर एक तू ही नहीं ज़ीस्त का<br/>बहाना यह जीने के लिए होता है '''लेखन वर्ष: २००३<br/><br/poem>