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कवि: [[{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=नागार्जुन]]|संग्रह=}}
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[[Category:नागार्जुन]]
~*~*~*~*~*~*~*~  <Poem>
नए गगन में नया सूर्य जो चमक रहा है
 
यह विशाल भूखंड आज जो दमक रहा है
 
मेरी भी आभा है इसमें
 
 
भीनी-भीनी खुशबूवाले
 
रंग-बिरंगे
 
यह जो इतने फूल खिले हैं
 
कल इनको मेरे प्राणों मे नहलाया था
 
कल इनको मेरे सपनों ने सहलाया था
 
 
पकी सुनहली फसलों से जो
 
अबकी यह खलिहाल भर गया
 मेरी रग-रग के शोणित की बूँदें बूंदें इसमें मुसकाती हैं   
नए गगन में नया सूर्य जो चमक रहा है
 
यह विशाल भूखंड आज जो चमक रहा है
'''रचनाकाल : 1961</poem>
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