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{{KKRachna
|रचनाकार=ख़्वाजा मीर दर्द
}}[[category: ग़ज़ल]] अर्ज़ ओ समाँ कहाँ तेरी वुसअत को पा सके<br>
मेरा ही दिल है वो कि जहाँ तू समाँ सके<br><br>
यारब ये क्या तिलिस्म है इद्राक ओ फ़ेहम याँ <br>
दोड़े दौड़े हज़ार,आप से बाहर न जा सके <br><br>
गो बहस करके बात बिठाई प क्या हुसूल <br>
दिल सा उठा ग़िलाफ़ अगर तू उठा सके <br><br>
इतफ़ा --नार --इश्क़ न हो आब --अश्क से <br>
ये आग वो नहीं जिसे पानी बुझा सके<br><br>
मस्त --शराब --इश्क़ वो बेखुद है जिस को जिसको हश्र <br>दर्द चाहे लाए लाये बखुद पर न ला सके <br><br>