भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सौदा }} [[category: ग़ज़ल]] <poem> पाया वो हम इस बाग़ में जो क...
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=सौदा
}}
[[category: ग़ज़ल]]

<poem>

पाया वो हम इस बाग़ में जो काम न आया
कुछ अपने लिए जुज़-समरे-ख़ाम१ न आया

ऐ ज़मज़मापरदाज़े-चमन२, नाला हमारा
वो मुर्ग़३ न समझे जो तहे-दाम४ न आया

आरास्ता जो बज़्म हुई५ दौरे-फ़लक़ में६
वाँ७ जाम बजुज़-गर्दिशे-अय्याम८ न आया

बुस्तान९ तो पुर-अज़-मेवए-अक़साम१० है लेकिन
साये में किसू११ नख़्ल१२ के आराम न आया

मैं नंग१३ हूँ इतना कि पिदर१४ और पिसर१५ के
लब पर कभू मजलिस में मिरा नाम न आया

है रंगे-तमाशा-ए-जहाँ१६ सूरते-ख़ुर्शीद१७
जो सुब्ह को देखा वो नज़र शाम न आया

आफ़ात ही ऐ चर्ख़, उठा जानी हैं तूने!१८
ज़ालिम, किसी गिरते को तुझे थाम न आया

इसका तो गिला क्या है कि बुस्ताने-जहाँ में१९
मुझ तक क़दहे-बाद-ए-गुल्फ़ाम२० न आया

'''शब्दार्थ:
''१.कच्चे फल के अतिरिक्त २.चमन के गीत गाने वाला ३.पक्षी ४.जाल के नीचे
''५.महफ़िल जब सज गयी ६.आकाश के चक्र में ७.वहाँ ८.समय चक्र के अतिरिक्त
''९.बाग़ १०.तरह-तरह के मेवों से भरा ११.किसी(पुरानी उर्दू) १२.पेड़ १३.लज्जा
''१४.पिता १५.पुत्र १६.दुनिया के तमाशे का रंग १७.सूरज की तरह १८.ऐ आकाश,
''तूने सिर्फ़ आफ़तें ढाना जाना है १९.दुनिया रूपी बाग़ में २०.उम्दा शराब का घड़ा
</poem>