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{{KKRachna
|रचनाकार=विनय प्रजापति 'नज़र'
}}
[[Category:ग़ज़ल]]

'''लेखन वर्ष: २००६-२००७

<poem>
दूदे-तन्हाई के उस पार क्या है
वह ख़ुद है या उसके हुस्न की ज़या है

बेवजह किसी की याद यूँ सताती नहीं
मेरे दिल ने तुझको पसन्द किया है

फ़ैज़ क्या सोचें राहे-मोहब्बत में
क़ैस न हो हर आशिक़ इतनी दुआ है

सहाब बरसें हैं एक मुद्दत के बाद
यह मेरा नसीब है या उसकी वफ़ा है

हिचकियाँ आये हुए मुझको बरस हुए
क्या तुमने कभी मुझे याद किया है

तेरे जाने के बाद दिल में कुछ न रहा
वह ढूँढ़ते हैं जो मुझमें तेरा नक्शे-पा है

अब सबा हर-सू चुपचाप बहती है
उसकी ख़ामोशी यह कहती है तू ख़फ़ा है

ख़ुश रहो कि हम जाते हैं तेरी दुनिया से
ग़ैर से निबाह में अब तेरी दुनिया है

जो कहता था ‘नज़र’ इश्क़ से बचना
वह ख़ुद ही आज उसमें मुब्तिला है

'''शब्दार्थ:
''दूदे-तन्हाई = तन्हाई का धुँधलका (haze of solitude), ज़या = रोशनी (light), फ़ैज़ = फ़ायदा (profit),
''क़ैस = मजनूँ का वास्तविक नाम, सहाब = बादल (cloud), नक्शे-पा = क़दमों के निशान (footprint),
''सबा = सुबह की हवा, मुब्तिला = फँसा हुआ, जकड़ा हुआ (embroiled)

</poem>