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एक बस / प्रयाग शुक्ल

1 byte added, 05:54, 1 जनवरी 2009
|संग्रह=यह एक दिन है / प्रयाग शुक्ल
}}
 <Poem>
वहाँ ठंड थी
 
जहाँ हम थे
 
हम थे
 
डाले हुए ओवरकोट
 
ओवरकोट की जेब में हाथ
 
वह पूरा एक शहर था
 
बत्तियाँ जल चुकी थीं,
 
भाग रही थीं कारें
 
लोग
 
हम खड़े थे एक मकान के नीचे
 
चालीसवें वर्ष में
 
ढके हुए आसमान ने कहा
 
यह चालीसवाँ करोड़ों के बीच है ।
हम ठिठुरे फिर हमने एक बस पकड़ी ।
</poem>
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