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पेड़ की बात / प्रयाग शुक्ल

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|संग्रह=यह एक दिन है / प्रयाग शुक्ल
}}
 <Poem>
आँखें बंद रहती हैं उनके ऊपर एक हाथ रखे
 
हम सुनते लेटे रहते हैं आवाज़ें रविवार की ।
 
हवा आती है, फड़फड़ाती कमरे में कागज़
 एक अँधेरे अंधेरे के बीच में किस तरह उग आता 
है इमली का पेड़ ।
 
उसके साथ की कच्ची सड़क से जा ही
 
रहे होते हैं हम कि आती है
 
बेटी उछलती 'हम देखने जा रहे हैं बंदर
 
का नाच'
 
हटा कर हाथ आँखों के ऊपर से
 
हम मुस्कराते हैं आदतन,
 
होठों तक आकर रह जाती है पेड़ की बात ।
</poem>
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