भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
|संग्रह=यह जो हरा है / प्रयाग शुक्ल
}}
<Poem>
तुम घटाना मत
अपना प्रेम
तब भी नहीं
जब लोग करने लगें
उसका हिसाब ।
ठगा हुआ पाओ
अपने को
अकेला
एक दिन--
तब भी नहीं ।
मत घटाना
अपना प्रेम ।
बंद कर देगी तुमासे बोलना
नहीं तो
धरती यह चिड़िया यह घास यह--
मुँह फेर लेगा आसमान ।
नहीं, तुम घटाना नहीं
अपना प्रेम ।
</poem>