भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

पिता / कुँअर बेचैन

158 bytes removed, 21:50, 3 जनवरी 2009
|रचनाकार=कुँअर बेचैन
}}
 <Poem>
ओ पिता,
 
तुम गीत हो घर के
 
और अनगिन काम दफ़्तर के।
 
छाँव में हम रह सकें यूँ ही
 
धूप में तुम रोज़ जलते हो
 
तुम हमें विश्वास देने को
 
दूर, कितनी दूर चलते हो
 
ओ पिता,
 
तुम दीप हो घर के
 
और सूरज-चाँद अंबर के।
 
तुम हमारे सब अभावों की
 
पूर्तियाँ करते रहे हँसकर
 
मुक्ति देते ही रहे हमको
 
स्वयं दुख के जाल में फँसकर
 
ओ पिता,
 
तुम स्वर, नए स्वर के
 
नित नये संकल्प निर्झर के।
  '''''-- यह कविता [[Dr.Bhawna Kunwar]] द्वारा कविता कोश में डाली गयी है।<br/poem><br>'''''
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
54,158
edits